देवी सीता और कुंती ने भी रखा था सूर्य षष्ठी का व्रत

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प्रयागराज (कैनविज टाइम्स ब्यूरो) – सूर्योपासना की परंपरा सनातन धर्म में प्राचीनकाल से चली आ रही है। इसका वर्णन वेदों-पुराणों में भी है। ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि सूर्य ब्रह्मांड में ऊर्ज़ा का सबसे बड़ा केंद्र हैं। इन्हें सृष्टि की आत्मा की संज्ञा दी गई है। उन्होंने बताया कि सूर्य प्रकाश के बिना सृष्टि की कल्पना नहीं की जा सकती। इसके चलते सनातन धर्म में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष देव स्वरूप में इनका पूजन प्रारंभ हुआ। त्रेतायुग में भगवान राम लंका विजय के बाद अयोध्या आए तो रामराज्य के लिए देवी सीता ने सूर्य षष्ठी यानी डाला छठ का व्रत रखा था। जबकि द्बापर युग में कुंती ने अपने पुत्रों की सलामती के लिए छठ का व्रत रखकर पूजन किया था। डाला छठ व्रत के दूसरे दिन सोमवार को खरना होगा। खरना से निर्जला व्रत का आरंभ हुआ।

व्रती महिलाएं दिन में उपवास रखकर भजन-कीर्तन में समय व्यतीत कर रही हैं। चावल व नए गुड़ से ‘खरना’ बनाया गया। इसे छठ मइया को अर्पित किया जाएगा। फिर शाम को गन्ने के रस की खीर बनाकर उसे मिट्टी के पांच बर्तनों में रखकर पूजा करने के बाद हवन कर उसे प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाएगा। गंगा व यमुना घाटों पर बांस की बनी टोकरी में सूप को रखा जाता है। सूप जलता दीपक, केला, गन्ना, मूली, अमरूद, खरना, सिदूर सहित पूजन की हर सामग्री रखकर घाट तक जाने की मान्यता है। घाट पर पहुंचकर गन्ने के 12 पेड़ का मंडप बनाकर व्रती महिलाएं उसके अंदर बैठकर पूजा करती हैं। फिर डूबते हुए सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। इसके बाद पूरी रात घाट पर ही बिताकर दूसरे दिन उगते सूर्य को अघ्र्य देने के बाद व्रत का पारण होगा। डाला छठ के मद्देनजर पूर्वांचल विकास एवं छठ पूजा समिति ने संगम नोज पर पूजन कराया।

मंत्रोच्चार के बीच रविवार की सुबह आदित्य हृदयश्रोत पाठ के बीच भगवान सूर्यदेव की प्रतिमा स्थापित की गई। 11 ब्राह्मणों ने सूर्यदेव की प्रतिमा स्थापित कराकर 1०8 बार सूर्य चालीसा का पाठ किया। इस दौरान नागेंद्र सिह, शेषनाथ सिह, सुदामा सिह, अमन सिह, नवीन चंद्र भारतीय, सुरेश यादव, प्रशांत सिह, विनोद पटेल मौजूद रहे। सूर्य स्तुति का महापर्व डाला छठ कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर नहाय-खाय से शुरू हुआ। व्रती महिलाएं पहले दिन उपवास रखकर पूजा की तैयारी में लगी रहीं। सुबह पूजन के बाद घर में ही सूर्य को अघ्र्य दिया। पूजा के लिए विशेष कमरा तैयार किया। शाम को स्नान करके बिना सिले वस्त्र धारण करके पूजन किया। पूजन के बाद लौकी-चने की दाल, कद्दू व भात बनाकर पूरे परिवार के सदस्यों ने एक साथ बैठकर ग्रहण किया। व्रती महिलाओं के घरों में तीन दिनों तक लहसुन व प्याज का प्रयोग नहीं किया जाएगा। षष्ठी तिथि पर मंगलवार को छठ मइया की विशेष पूजा होगी।

इसमें व्रती महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखकर शाम को डूबते सूर्य को अघ्र्य देंगी, जिनकी मनोकामना पूरी हो गई है वह कोसी भरेंगी। व्रती महिलाएं मांगलिक गीत गाते हुए गंगा या यमुना घाट तक जाएंगी। डाला छठ को लेकर रेलगाडिèयों में जगह नहीं है। बिहार की ओर जाने वाली गाडिèयों में क्या आरक्षित और क्या जनरल बोली, सबमें भीड़ है। जनरल कोच में तो जगह के लिए मारामारी है। आलम यह है कि गाड़ी के दरवाजे तक भीड़ है। इससे प्लेटफार्म पर खड़े लोगों को अंदर जाने के लिए धक्का-मुक्की करनी पड़ रही है। छठ पूजा समिति ने दशाश्वमेध घाट पर गंदगी होने पर नाराजगी व्यक्त की। संयोजक विजय शंकर पांडेय ने कहा कि घाट पर डाला छठ का पूजन करने हजारों श्रद्धालु आते हैं, लेकिन सफाई का उचित प्रबंध नहीं हुआ। घाट के चारों ओर कीचड़ व गंदगी फैली है। प्रकाश की उचित व्यवस्था न होने से लोगों को दिक्कत हो रही है। घनश्याम पांडेय, संजय पांडेय, रंजीव निषाद आदि ने नाराजगी जताई है।

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