लखनऊ। भाकृअनुप एनबीएफजीआर में पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह मनाया गया। पार्थेनियम जिसे गाजरघास या कांग्रेस घास के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया भर में प्रचलित सबसे आक्रामक खरपतवारों में से एक है, जो मानव और पशु स्वास्थ्य को खतरे में डालने के साथ साथ पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है। पार्थेनियम के पौधे के संपर्क में आने पर, इसमें पाया जाने वाला पार्थेनिन नामक एक विषाक्त पदार्थ मनुष्यों और जानवरों में डर्मेटाइटिस, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी श्वसन समस्याओं का कारण बनता है। पशुधन में भी दुधारू पशुओं का चारा पार्थेनियम के पत्तों से दूषित हो जाए तो उन्हें कड़वा दूध रोग हो जाता है। भारत में पार्थेनियम कृषि या ग्रामीण और शहरी आबादी, रेलवेलाइन और सड़कों के किनारे, स्कूलों, कृषि और अन्य संस्थान परिसरों में एक गंभीर समस्या बन गया है। भाकृअनुप खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर इस समस्या को देखते हुए हर साल एक राष्ट्रव्यापी गाजरघास जागरूकता सप्ताह मनाये जाने का आह्वान करता है। इस क्रम में भाकृअनुप मुख्यालय नई दिल्ली के निर्देशानुसार लखनऊ के तेलीबाग स्थित भाकृअनुप राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो परिसर में 18वां पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह मनाया गया। यह कार्यक्रम 16 से 22 अगस्त के दौरान आयोजित किया गया।
निदेशक डॉ उत्तम कुमार सरकार ने संस्थान परिसर और आसपास से पार्थेनियम को खत्म करने के लिए आईसीएआर के महानिदेशक और कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग के सचिव डॉ हिमांशु पाठक द्वारा की गई अपील से कर्मचारियों को अवगत कराया। संस्थान के विभिन्न प्रभागों और फार्म इकाई के लगभग 250 कर्मचारियों ने संस्थान परिसर और उसके आसपास से पार्थेनियम को सावधानीपूर्वक हटाया और इस घास से होने वाले नुकसान पर चर्चा की। डॉ सरकार ने कहा कि पार्थेनियम के पौधों को फूल आने से पहले उखाड़ देना चाहिए अन्यथा विपुल बीज उत्पादक होने और हल्के वजन के बीज होने के कारण वे हवा, पानी या मानव गतिविधियों द्वारा आसानी से नए क्षेत्रों में फैल जाते हैं। प्रधान वैज्ञानिक डॉ अचल सिंह ने कार्यक्रम का संयोजन किया।