मुंबई: हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता एके हंगल की आज पुण्यतिथि है। इन्हें अवतार किशन हंगल के नाम से भी जाना जाता हैं। इसके अलावा उन्होंने राजनीति में भी अपना हाथ आजमाया है। दरअसल एके हंगल फिल्मों में आने से पहले स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई का हिस्सा भी थे।
बता दें कि आजादी की लड़ाई लड़ने के दौरान वह तीन साल तक जेल में भी रहे, बटवारे के बाद पाकिस्तान के सियालकोट में जन्मे एके हंगल मुंबई आ गए थे। मुंबई में पढ़ाई करने के बाद उनकी दिलचस्पी थिएटर में जगी। वह कई सालों तक थिएटर का हिस्सा रहे। 50 साल की उम्र में उन्होंने अपना फिल्मी करियर शुरू किया। उन्होंने अपने फिल्मी करियर में कई हिट फिल्मों में यादगार रोल निभाए, जिनमें से एक शोले के रहीम चाचा का किरदार भी है। रहीम चाचा का किरदार भले ही छोटा था, लेकिन उनका एक डायलॉग आज भी लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल कर ही लेते हैं।
एके हंगल साल 1960 के शुरुआती दौर में पीपल्स थिएटर एसोसिएशन से जुड़े थे। एक दिन हंगल साहब मुंबई के वॉर्डन रोड पर स्थित भूलाभाई देसाई इंस्टिट्यूट में एक नाटक की रिहर्सल कर रहे थे। उसी दौरान उनसे मिलने के लिए वहां महान फिल्म निर्देशक बासु भट्टाचार्य पहुंच गए। उन्होंने एके हंगल से मुलाकात की। बासु ने उन्हें बताया कि वह एक फिल्म बना रहे हैं, जिसका नाम है- तीसरी कसम।
इस फिल्म में राज कपूर के एक बड़े भाई का किरदार है, जिसे वह चाहते थे कि एके हंगल ही निभाएं। एके हंगल पहले ही फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने की जद्दोजहद में लगे थे। अब ऐसे में सामने से फिल्म का ऑफर मिला तो उन्होंने उसके लिए बासु भट्टाचार्य से तुरंत हां कर दी। इस फिल्म के लिए हां करने की सिर्फ यही वजह नहीं थी कि उन्हें किसी फिल्म में काम करना था, बल्कि उन्हें पहली ही फिल्म में राज कपूर जैसे दिग्गज कलाकार के बड़े भाई का रोल करने का मौका मिल रहा था, जिसे वह किसी सूरत में गंवाना नहीं चाहते थे। फिल्म की शूटिंग हुई। उन्होंने अपने हिस्से की शूटिंग भी पूरी कर ली, लेकिन एके हंगल की बदकिस्मती तो देखिए कि अपनी पहली ही फिल्म के रिलीज होने का उन्हें छह साल तक इंतजार करना पड़ा। वह अपने आप को बड़े पर्दे पर देखने के लिए काफी उत्साहित थे। छह साल बाद यानी 1966 में जब तीसरी कसम फिल्म रिलीज हुई तो वह काफी निराश हुए। वह खुद को बड़े पर्दे पर देखने के लिए बहुत ही खुश होकर सिनेमाघर पहुंचे थे, लेकिन पूरी फिल्म खत्म हो गई, पर वह उस फिल्म में खुद को ढूंढ भी न पाए। वो इसलिए, क्योंकि उनके सारे सीन एडिटिंग में काट दिए गए थे। इससे एके हंगल साहब का दिल टूट गया था।