जीवन बिसात
दिन ढ़ला ,रात हो गयी,
जागे चंदा और सितारे,
टूट गए भरम के सपने ,
अनजान सफर मे सारे,
ऊपर तेरे नील गगन है,
यहां धरा पर कांटे,
चारों ओर क्षितिज है सपना…
कहाँ खड़ा तू प्यारे ….
शतरंज की गोट बन बैठा,
तू जीवन के चौखाने मे,
बंधा हुआ है तेरा जीवन ,
कुछ सीधी तिरछी चालो से,
सर पर बोझा मोह का
मन मे मोह की आंधी ,
भाग रहा है पागल हो कर ,
पाने को कौन सहारा,
पाने को कौन सहारा ….
कवियत्री प्रिया दीक्षित
साहित्य सुधा मंच सीतापुर