चीन के खाने पर जी रहे हैं उत्तराखंड के इन 7 गांवों के लोग

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पिथौरागढ़। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में करीब 7 गांव के लोग चीन से अनाज खरीदकर खाने को मजबूर हैं। यहां के दूरस्थ इलाके धारचूला के ब्यास घाटी में रहने वाले करीब 400 परिवारों की खाने के सामान जैसे नमक, खाने का तेल, चावल, आटा के साथ ही रोजमर्रा की चीजों की जरूरत चीन से पूरी हो रही हैं।

एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, घाटी तक जाने वाली सड़क कई महीनों तक बाधित होने की वजह से उत्तराखंड सरकार की ओर से मिलने वाला राशन घाटी के 7 गांवों के लोगों तक समय पर नहीं पहुंच पाता है। यहां के बूंदी, गूंजी, गर्ब्यांग, कुटी, नपलचु, नभी और रोंकॉन्ग के निवासियों के लिए सरकार की ओर से भेजा जाने वाला राशन कम पड़ जाता है।

इस वजह से वे नेपाल के रास्ते चीन से आने वाले खाने पीने के सामान पर निर्भर रहते हैं। दरअसल, घाटी तक जाने वाली सड़क लिपुलेख पास पर कई महीनों तक बंद रहती। यह सड़क इन गांवों को दूसरे जिलों से जोड़ती है। इस वजह से सरकार द्वारा पहुंचाया जाने वाला राशन वहां देर से पहुंचता है।

गारब्यांग गांव के रहने वाले कृष्ण गारब्याल ने कहा कि हम अपने ही देश में अनाथों की तरह रह रहे हैं। हम दो पड़ोसी देशों की सीमा में बसे हैं, जो कि अहम सीमाई इलाका है। सरकार को हमारे तरफ से होने वाली अतिरिक्त खाद्यान को भेजने की मांग को हमदर्दी के साथ देखना चाहिए।

महीनों से लिपुलेखा दर्रा बंद होने की वजह से अभी वहां खाने-पीने की चीजें पूरी तरह से नहीं पहुंची हैं। जो थोड़ी बहुत आपूर्ति पहुंची है, वह 400 परिवारों का पेट भरने के लिए काफी नहीं है। सरकार केवल दो किलो चावल और पांच किलो गेहूं प्रत्येक परिवार के हिसाब से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए मिलता है। लिहाजा, गांव के लोग अक्सर नेपाल के टिनकर और चंगरु गांवों से रोज का सामान लेने को मजबूर हैं, जो चीन से इसे खरीदते हैं।

इस मामले में धारचूला के एसडीएम आरके पांडे ने कहा कि हमने सरकार के पास ग्रामीणों का राशन कोटा बढ़ाने की मांग भेज दी है। मगर, सरकार की तरफ से इसे अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है। पिथौरागढ़ के डीएम सी रविशंकर ने कहा कि जैसे ही गांव तक पहुंचने के लिए सकड़ें बन जाएंगी, लोगों को राशन की आपूर्ति में होने वाली कमी की समस्या भी खत्म हो जाएगी।

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