अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ती मायानगरी

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लहरपुर / सीतापुर

 – आज व पूर्व का बॉलीवुड??

हरीश रस्तोगी  “गोलू भईया”

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध असामयिक आत्महत्या ने भारतीय फ़िल्म जगत में भूचाल ला दिया है ! इससे पहले बॉलीवुड जिसे मायानगरी भी कहा जाता है , अपने नाम के अनुरूप ही उसमें व्याप्त तथाकथित माया , ग्लैमर ,कलाकारों की अति महत्वाकांक्षा, आपसी ईर्ष्या, आगे निकलने व जल्दी मशहूर होने के लिये अपने स्वाभिमान व सम्मान से समझौता , फ़िल्मी कलाकारों के आपसी संबंधों में कहीं कहीं अनैतिकता का भी समावेश नज़र आता है !
बॉलीवुड की फ़िल्में कभी हमारे समाज का आइना होती थी ! पचास और साठ के दशक में निर्मित फ़िल्में जब देवानंदजी , अशोक कुमार , दिलीप कुमार , मनोज कुमार , राजेन्द्र कुमार , शम्मी कपूर व अन्य कलाकार और महिला कलाकारों में मधुबाला , नरगिस , वहीदा रहमान व अन्य समकक्ष हीरोइनें मर्यादा में रहकर अपने हुनर का प्रदर्शन रुपहले पर्दे पर करते थे तो दर्शक उनके अभिनय से प्रभावित होकर उन्हें अपना आदर्श मानते थे !सत्तर और अस्सी के दशकों में बनी फ़िल्मों में राजेश खन्ना , अमिताभ बच्चन , धर्मेन्द्र , शशिकपूर , राजकुमार व अन्य कलाकार हेमामालिनी , रेखा , राखी , जया भादुड़ी, मौसमी चटर्जी, परवीन बाबी व अन्य नामचीन हीरोइनों के साथ अपनी अदाकारी से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते थे !
इसके पश्चात 80 के दशक के मध्य से भारतीय फ़िल्म जगत में मायानगरी मुंबई के अपराधी तत्व ( डॉन ) व अंतर्राष्ट्रीय डॉन ( जो विदेशों से अपनें साम्राज्य का संचालन करते थे ) अपना पैसा फ़िल्म इंडस्ट्री में लगाने लगे व बहुत जल्द उन्होंने अभिनेताओं, अभिनेत्रियों , प्रोड्यूसरों, व बॉलीवुड के अन्य लोगों पर दवाब बनाकर अपनी सुविधानुसार उसे संचालित करने लगे ! वर्ष 1990 से लेकर वर्ष 2002 तक फ़िल्म जगत के अन्दर होने वाले क्रियाकलापों व योजनाओं का बाहर आ पाना अवरोधित था , लेकिन बाद के वर्षों में सोशल मीडिया की बहुतायत के कारण वहाँ की अन्दरूनी खबरें , मनमुटाव , आपसी संबंध व अन्य गोपनीय जानकारियाँ वॉयरल होनी शुरू हो गयीं व देश की जनता ये समझने अवश्य लगी कि वहाँ पूरी तरह पारदर्शिता ना होकर कुछ गड़बड़ अवश्य है !
2014 में केंद्र की सत्ता मे पिछले 10 वर्षों से कांग्रेस पार्टी के द्वारा संचालित यूपीए की सरकार के मोदी जी की राष्ट्रवादी विचारधारा में आस्था रखने वाली सरकार से परिवर्तित होते ही पिछले छह वर्षों में देशवासियों की उदासीन व तटस्थ विचारधारा में परिवर्तन दिखने लगा व देश विरोध की सार्वजनिक तौर पर बात करने वाले और देश को तोड़ने की मानसिकता रखने वाले संगठनों , समूहों व व्यक्तियों ( फ़िल्म , कला , खेल , सामाजिक , व्यापारिक , शिक्षा व अन्य तमाम क्षेत्रों ) पर आम देशवासियों की पैनी निगाह उनका विश्लेषण करने लगी !

अब भारत बदल रहा है !

चूँकि बात केवल फ़िल्म इंडस्ट्री की हो रही है तो लोगों की राष्ट्रवादी भावनाओं की पिछले कुछ समय में फ़िल्म इंडस्ट्री की कुछ शख़्सियतों के प्रदर्शन पर पड़ने वाले प्रभाव की कर लेते हैं !
नामवर प्रोड्यूसर महेश भट्ट की “ सड़क – 2 “ के ट्रेलर को दो दिनों के अन्दर एक करोड़ पचास लाख “ डिस्लाइक “ मिलना हतप्रभ करता है !
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के बाद स्वयं को उन जैसा मानने वाले “ शाहरुख़ खान “ पिछले चार पाँच वर्षों से एक हिट फ़िल्म का इंतज़ार ही कर रहे हैं ! इसी श्रेणी में पिछले दस पन्द्रह वर्षों से बॉलीवुड पर राज करने वाले “ सलमान खान “ , “ आमिर खान “ भी पिछले तीन चार साल से बॉक्स ऑफिस पर अपना पुराना करिश्मा दिखाने में नाकाम ही हैं ! जे एनः यू में अभिनेत्री “ दीपिका “ के जाने के कारण उनकी राष्ट्र के प्रति श्रद्धा संदिग्ध होते ही उनकी बहुप्रतीक्षित फ़िल्म “ छपाक “ दर्शकों के विरोध के कारण औंधे मुंह गिर गई , “ नवजोत सिंह सिद्धू “ के टीवी शोज़ का बहिष्कार होने लगा , “ आमिर खान “ को भी विरोध के कारण एक बड़े विज्ञापन से हटने को विवश होना पड़ा !
कहने का मतलब ये है कि अब उन बड़े चर्चित व सेलेब्रिटीज़ को भी जनता स्वीकार करने पर तैयार नहीं है जो देश विरोधी बयान देते हैं , देश विरोधियों का समर्थन करते हैं , या एैसे मुद्दे जो देश की अस्मिता और गौरव से जुड़े हैं , के ख़िलाफ़ बोलने या जाने की बात भी जाने अनजाने करते है !
वहीं दूसरी तरफ़ “ अक्षय कुमार “ , “ अजय देवगन “ जैसे राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत अभिनेताओं की फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाड़ रही हैं ! ये अभिनेता देश के , सेना के साथ खड़े होते हैं व व्यक्तिगत तौर पर आर्थिक मदद भी प्रदान करते हैं ! इसमें एक नाम अभिनेता “ सोनू सूद “ का भी हैं जिन्होंने कोरोनाकाल में प्रवासी मज़दूरों के प्रति अपनी संवेदनशीलता का प्रदर्शन कर फ़िल्मी पर्दे पर खलनायक की भूमिकाओें में उतरने के विपरीत देश की जनता के दिलों में एक नायक की तरह स्थान सुरक्षित कर लिया है !
अभिव्यक्त की आज़ादी के नाम पर देश व सेना के साथ धर्म तक का उपहास करने वालों को अब सोशल मीडिया के मंचों पर जनता की सक्रियता के कारण ये ध्यान रखना चाहिये कि अभिव्यक्ति की आज़ादी तभी तक उचित है जब तक दूसरों की आज़ादी व भावनायें प्रभावित ना हो , वरना जनता अब बेहद जागरुक हो चुकी है व वो तुरंत फ़ैसला लेकर व्यक्तिगत छवि को सकारात्मक या नकारात्मक बना सकती है !

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