परवरिश

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लेखक नागेन्द्र दीक्षित

*परवरिश*
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नागेंद्र दीक्षित

होली के अगले दिन की बात है, सोचा जल्दी से दो चार घर मंझा लेता हूँ। मित्र को साथ लिया और निकल पडा…यहां पर मैं आपको दो घरों की परवरिश के बारे में बताता हूँ। दोनो ही संभ्रांत और पढ़े लिखे परिवार है मगर…..
पहले घर गया, चाय पानी हुवा। गौर किया, घर मे घुप बत्ती महक रही थी, घंटी बज रही थी ,अंदर आरती हो रही थी, बेटी आरती की थाली लेकर आई , सिर से पाँव तक ढकी हुई , अत्यंत शालीन, पिता और हम लोगो को आरती की थाल दिखाते हुये अंदर चली गई।
अब दूसरा घर …अंकल गेट पर ही तमाखू पीटते मिल गये, यहाँ भी चाय पापड़ रसीद दिया , रूम के अंदर से हनी सिंह के गाने की आवाज आ रही थी,बेटी बम्बइया वस्त्र धारण किये , थिरकते हुये गेस्ट रूम में आई और हम सबको अजनबियों की तरह देखते हुये वापस चली गई, बगैर किसी आतिथ्य भाव के। वही अंकल बेटी की बड़ाई के पुल बांधे जा रहे थे, बोले रुचि 1 लाख रुपया महीना पाने लगी है, पिछले महीने ही दूसरी कंपनी जॉइन की है।
……चायपानी के सिलसिले के दौरान दोनो अंकलों ने मुझसे एक बात कॉमन कही …बोले बेटा !! बेटी के लिये कोई ठीक ठाक लड़का हो तो बताना, ….मेरी नजर में एक लड़का था, बिजनेसमैन था, सुशिक्षित परिवार, पैसे लत्ते में मजबूत ..मैंने पहले वाले अंकल की बेटी के लिये उस लड़के को रिकमेंड किया।
आज बेटी की शादी हुये 3 वर्ष बीत गये । दोनों पक्ष खुस है, अक्सर बात होती है अंकल से ….वही दूसरे अंकल का कल फोन आया, कुछ परेशान लगे!! बोले बेटा …रुचि का पति और सास ठीक नही है, उसके घर वाले उसे परेशान कर रहे है। कोई ठीक ठाक वकील हो तो बतावो…..
फोन कटते ही दिमाग 3 वर्ष पीछे चला गया ……जब मैंने सूक्ष्म विश्लेषण किया था दोनो घरों की परवरिश का ।

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