क्या केंद्र उत्तराखण्ड का दांव चलेगा बंगाल पर ? ममता के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है तीरथ का संकट !

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  • खतरे की घंटी बन सकता है संवैधानिक संकट
  • 4 नवंबर के भीतर ममता का उपचुनाव में जीत कर विधायक बनना जरूरी
  • विधान परिषद का दांव भी सफल होना संभव नहीं

 काेलकाता : उत्तरखण्ड में 111 दिनों के कार्यकाल के भीतर ही तीरथ सिंह रावत ने अपना इस्तीफा दे दिया। तीरथ सिंह रावत ने विधानसभा के सदस्य न होते हुए मुख्यमंत्री पद की शपथ ली इस रणनीति के तहत कि अगले 6 महीनों में उपचुनाव में वे जीत कर विधायक की सदस्या हासिल कर लेंगे। कोरोना की स्थितियाें को देखते हुए तीरथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। जानकारों की माने तो उत्तराखण्ड की इस राजनीतिक उथल-पुथल का असर बंगाल पर भी पड़ सकता है। यानी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी संवैधानिक संकट से जूझ सकती है क्योंकि वह बंगाल की मुख्यमंत्री तो है लेकिन अब तक वे विधानसभा की सदस्य नहीं है।

ममता बनर्जी नंदीग्राम में हारी, भवानीपुर में सीट खाली करायी गयी

ममता बनर्जी विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम में शुभेन्दु अधिकारी से हार गयी थी। बावजूद इसके पार्टी ने सर्वसम्मति से ममता को मुख्यमंत्री चुना और उन्होंने 4 मई को शपथ ली। नियम के तहत ममता को अगले 6 महीनों में उपचुनाव में विधायक की सदस्यता लेनी है। इसके लिए राज्य में 4 नवंबर तक उपचुनाव होना चाहिए। इसके लिए ममता की पुरानी सीट भवानीपुर को खाली कराया गया है। वहां के विधायक शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने इस्तीफा देकर अपना सीट खाली कर दिया है। अनुच्छेद 164 के तहत ममता को 6 महीने के अंदर यानी 4 नवंबर 2021 तक विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी है और यह संवैधानिक बाध्यता है। देश में कोरोना का संक्रमण है, ऐसे में अगर चुनाव आयोग उपचुनाव को लेकर फैसला नहीं लेता है तो निश्चित तौर पर ममता के लिए यह संवैधानिक संकट बड़ा सिरदर्द साबित होगा।

विधान परिषद का दांव सफल होना संभव नहीं

 2011 के बाद एक बार फिर ममता बनर्जी राज्य में विधान परिषद बनाने की ओर अग्रसर हुई है। विधानसभा के इस सत्र में इस प्रस्ताव को लाकर चर्चा भी होना है लेकिन विधान परिषद का गठन तृणमूल सरकार के लिए आसान राह नहीं होगी क्योंकि इसे पूर्ण कानून का रूप देने के लिए प्रस्ताव को संसद के दोनों सदन में पास होने के बाद राष्ट्रपति की हरी झण्डी की जरूरत है। अब केंद्र सरकार के साथ ममता बनर्जी के रिश्ते कैसे है यह सभी जानते है। पश्चिम बंगाल सरकार के इस प्रस्ताव को सदन में मान्यता मिलने की राह इतनी आसान नहीं ऐसे में विधान परिषद का विकल्प वाला रास्ता भी ममता के लिए लगभग असंभव सा दिख रहा है।

 

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