यदि लंबे समय से दस्त आ रहे हो तो न करें लापरवाही हो सकते हैं आईबीडी के लक्षण:- कैनविज टाइम्स

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यदि लंबे समय से दस्त आ रहे हो तो न करें लापरवाही हो सकते हैं आईबीडी के लक्षण:- कैनविज टाइम्स

रिपोर्टर: वहाब उद्दीन सिद्दीक़ी

लखनऊ। राजधानी के किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.सुमित रूंगटा द्वारा शताब्दी फेज़ 2 स्थित सेमीनार हाल में वर्ड आईबीडी डे के अवसर पर डॉक्टरों व नागरिकों को जागरूक करने के उद्देश्य से एक कार्यक्रम आयोजत किया गया। जिसमे आईबीडी (इंफ्लेमेटरी बॉवेल डिज़ीज़) नामक बीमारी के बारे में विस्तार से बताया गया की कैसे ये बीमारी आम इन्सानो को अपनी चपेट में ले लेती है और क्या है इससे बचने के उपाय।

इस अवसर पर गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.सुमित रूंगटा ने बताया कि आईबीडी दो प्रकार के होते हैं पहला अल्सरेटिव कोलाइटिस दूसरा कोन्स रोग। ये एक ऐसी बीमार जो अज्ञात कारणों से आंतो में सूजन पैदा कर देती है। यह बीमारी लंबे समय तक दस्त होना, पेट मे दर्द होना, मल में रक्त आने, बुखार, वज़न में कमी,एंव पोषण संबधी कमियों के लक्षणों के साथ प्रकट होती है। इस बीमारी का कोई निश्चित इलाज वर्तमान समय मे नही है परन्तु उप्लब्ध दवाओं और शाल्य चिकित्सा एंव अन्य पारम्परिक उपायों से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। और मरीज़ अपना जीवन जी सकता है।

वहीं इस मौके पर संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेस के डिपार्टमेंट ऑफ गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के डॉ. अभय वर्मा बताया की 2 दशक पूर्व इस बीमारी का होना हमारे देश में असामान्य माना जाता था। और शायद ही कभी इस बीमारी का निदान होता था। हालांकि अब पूरे देश में अधिक से अधिक आईडीबी के मामले का निदान किया जाता है। आईडीबी दिवस पूरे विश्व में 19 मई को होता है और दुनिया भर के लोगों को आईडीबी के खिलाफ लड़ाई में एकजुट करता है। भारत में आईबीडी के प्रसार के संबंध में आंकड़े बहुत कम है पंजाब और हरियाणा के दो अध्ययनों से पता चलता है लगभग एक लाख लोगों में से 45 लोग अल्सरेटिव कोलाइटिस से पीड़ित हैं। विभिन्न अस्पतालों के व्यक्तिगत अनुभवों से पता चलता है की आईबीडी के अधिक से अधिक मामलों में निदान किया जा रहा है। इस बीमारी की वजह बदलती जीवन शैली और खराब खानपान हो सकता है इस बीमारी के लिए कोई निश्चित निवारक उपाय नहीं है।

हालांकि यह देखा गया है की परिष्कृत भोजन ( मैदा, परिष्कृत चीनी) का अधिक सेवन ताजे फल और सब्जियों की कमी खाने में फाइबर की कमी, ध्रूमपान एंव तंबाकू का सेवन, दर्द निवारक दवाईयों का बार बार एवं समय तक इस्तेमाल इस बीमारी को पैदा होने में सहायता प्रदान करते हैं। इस बीमारी के इलाज के लिए कई तरह की दवाइयां उपलब्ध हैं जो मरीजों के किस रोग को नियंत्रित रखते हैं हालांकि कुछ मरीज ऐसे होते हैं जिनको अधिक असरदार दवाइयों की जरूरत होती है इनमें जैविक दवाइयों का उपयोग किया जाता है। जैविक दवाइयां एक नए वर्ग की दवाइयां है जिनका निर्माण महंगा एवं जटिल है। यह दवाई विकसित देशों की तुलना में हमारे देश में सस्ती दरों में उपलब्ध है उसके बावजूद भी इसकी लागत 20 से 25 हजार रुपए महीने की आती है। इस बीमारी अल्सरेटिव कोलाइटिस में एक नई टेक्निक का इजाद किया जा रहा है जिसे की एफएमटी कहते हैं। जिसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति के मल से जीवाणुओं को अलग कर बीमार व्यक्ति की आंतों को कोलोनोस्कोपी द्वारा स्थापित कर दिया जाता है यह तकनीक बहुत ही सस्ती है और हमारे देश में इस बीमारी में यह सहायक सिद्ध हो सकती है। यदि यह बीमारी शुरू में ही पकड़ में आ जाये और इसका लग कर इलाज कर लिया जाए तो उसे आसानी से उसे कंट्रोल किया जा सकता है और यदि इसमें देर की जाए और लंबे समय वाले लक्षण इसमें आ जाये तो फिर उसे ठीक कर पाना बहुत मुश्किल होता है इसी लिए बहुत ज़रूरी है कि बीमारी शुरुआत की स्टेज में ही पकड़ में आये। इस बीमारी में आँतों में सूजन आ जाती है आँतों में घाव हो जाते हैं दवाइयों के ज़रिए हम उसे ठीक कर सकते हैं किंतु अगर दवाइयों को बीच मे छोड़ दिया जाए तो दुबारा समस्या पैदा होने के बहुत अधिक असर बढ़ जाते हैं जड़ से तो यह बीमारी ख़त्म नही किबज सकती है मगर क़ाबू में ज़रूर की जा सकती है। जिन मरीज़ों में ये बीमारी बहुत अधिक बढ़ जाती है तो फिर उन केसों में हम कुछ खास किस्म की दवाइयों को इस्तिमाल करते हैं जिनको हम बायोलॉजिकलस के नाम से जानते हैं ये दवाइ अभी जो हमारे देश ने उपलब्ध हैं वो इंजेक्शन के रूप में आती हैं और ये इंजेक्शन मरीज़ की स्थिति के अनुसार हफ्ते में या 15 दिन ने देना पड़ता है फिर भी इस बीमारी को जड़ से खत्म नही किया जा सकता है सिर्फ कंट्रोल किया जा सकता है। पहके ये इंजेक्शन हमारे देश मे उपलब्ध नहीं थे मगर अब लगभग 4 सालो से ये हमारे देश मे उपलब्ध हैं।

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